कालीबंगा सभ्यता

कालीबंगा सभ्यता (2400-2250 ई.पू.)

  • सर्वप्रथम खोज –  1952 ई 
  • खोजकर्ता – अमलानन्द घोष।  

कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले का एक प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्थान है। यहाँ सिंधु घाटी सभ्यता के कुछ महत्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुये। कालीबंगा एक छोटा नगर था। यहाँ एक दुर्ग भी मिला है। प्राचीन द्रषद्वती और सरस्वती नदी घाटी वर्तमान में घग्गर नदी का क्षेत्र में सैन्धव सभ्यता से भी प्राचीन कालीबंगा की सभ्यता पल्लवित और पुष्पित हुई। सर्वप्रथम 1952 ई में अमलानन्द घोष के द्वारा इसकी खोज की गयी थी । बी.के थापर व बी.बी लाल ने 1961-69 में यहाँ उत्खनन का कार्य किया। यहाँ विश्व का सर्वप्रथम जोता हुआ खेत मिला है और 2900 ईसापूर्व तक यहाँ एक विकसित नगर था।

कालीबंगा का इतिहास

कालीबंगा सिंधु भाषा का शब्द है जो काली+बंगा (काले रंग की चूड़ियां) से बना है। काली का अर्थ काले रंग से तथा बंगा का अर्थ चूड़ीयों से है।राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के दक्षिण-पश्चिम में स्थित कालीबंगा स्थान पर उखनन द्वारा (1961 ई. के मध्य किए गए) 26 फुट ऊँची पश्चिमी थेड़ी (टीले) से प्राप्त अवशेषों से विदित होता है कि लगभग 4500 वर्ष पूर्व यहाँ सरस्वती नदी के किनारे हड़प्पा कालीन सभ्यता फल-फूल रही थी। कालीबंगा, हनुमानगढ़ जिले में पीलीबंगा के निकट स्थित है। यह स्थान प्राचीन काल की नदी सरस्वती (जो कालांतर में सूख कर लुप्त हो गई थी) के तट पर स्थित था। यह नदी अब घग्घर नदी के रूप में है। सतलज उत्तरी राजस्थान में समाहित होती थी।

सूरतगढ़ के निकट नोहर-भादरा क्षेत्र में सरस्वती व दृषद्वती का संगम स्थल था। स्वंय सिंधु नदी अपनी विशालता के कारण वर्षा ॠतु में समुद्र जैसा रूप धारण कर लेती थी जो उसके नामकरण से स्पष्ट है। हमारे देश भारत में “सिंधु सभ्यता” का मूलत: उद्भव विकास एवं प्रसार “सप्तसिन्धव” प्रदेश में हुआ तथा सरस्वती उपत्यका का उसमें विशिष्ट योगदान है। सरस्वती उपत्यका (घाटी) सरस्वती एवं दृषद्वती के मध्य स्थित “ब्रह्मवर्त” का पवित्र प्रदेश था जो मनु के अनुसार “देवनिर्मित” था। धनधान्य से परिपूर्ण इस क्षेत्र में वैदिक ऋचाओं का उद्बोधन भी हुआ। सरस्वती (वर्तमान में घग्घर) नदियों में उत्तम थी तथा गिरि से समुद्र में प्रवेश करती थी। ॠग्वेद (सप्तम मण्डल, 2/95) में कहा गया है-“एकाचतत् सरस्वती नदी नाम शुचिर्यतौ। गिरभ्य: आसमुद्रात।।” सतलज उत्तरी राजस्थान में सरस्वती में समाहित होती थी।

सी.एफ. ओल्डन ने ऐतिहासिक और भौगोलिक तथ्यों के आधार पर बताया कि घग्घर (पाकिस्तान में हकरा) नदी के घाट पर ॠग्वेद में बहने वाली नदी सरस्वती ‘दृषद्वती‘ थी। तब सतलज व यमुना नदियाँ अपने वर्तमान पाटों में प्रवाहित न होकर घग्घर व हकरा के पाटों में बहती थीं।महाभारत काल तक सरस्वती लुप्त हो चुकी थी और 13 वीं सदी तक सतलज, व्यास में मिल गई थी। पानी की मात्रा कम होने से सरस्वती रेतीले भाग में सूख गई थी।

ओल्डन महोदय के अनुसार सतलज और यमुना के बीच कई छोटी-बड़ी नदियाँ निकलती हैं। इनमें चौतंग, मारकंडा, सरस्वती आदि थी। ये नदियाँ आज भी वर्षा ॠतु में प्रवाहित होती हैं। राजस्थान के निकट ये नदियाँ निकल कर एक बड़ी नदी घग्घर का रूप ले लेती हैं। आगे चलकर यह नदी पाकिस्तान में हकरा, वाहिद, नारा नामों से जानी जाती है। ये नदियाँ आज सूखी हुई हैं – किन्तु इनका मार्ग राजस्थान से लेकर करांची और पूर्व कच्छ की खाड़ी तक देखा जा सकता है।

वाकणकर महाशय के अनुसार सरस्वती नदी के तट पर 200 से अधिक नगर बसे थे, जो हड़प्पाकालीन हैं। इस कारण इसे ‘सिंधुघाटी की सभ्यता’ के स्थान पर ‘सरस्वती नदी की सभ्यता‘ कहना चाहिए। मूलत: घग्घर-हकरा ही प्राचीन सरस्वती नदी थी जो सतलज और यमुना के संयुक्त गुजरात तक बहती थी जिसका पाट (चौड़ाई) ब्रह्मपुत्र नदी से बढ़कर 8 कि.मी. था।

वाकणकर के अनुसार सरस्वती नदी 2 लाख 50 हजार वर्ष पूर्व नागौर, लूनासर, ओसियाँ, डीडवाना होते हुए लूणी से मिलती थी जहाँ से वह पूर्व में कच्छ का रण में नानूरण जल सरोवर होकर लोथल के निकट संभात की काढ़ी में गिरती थी, किंतु 40,000 वर्ष पूर्व पहले भूचाल आया जिसके कारण सरस्वती नदी मार्ग परिवर्तन कर घग्घर नदी के मार्ग से होते हुए हनुमानगढ़ और सूरतगढ़ के बहावलपुर क्षेत्र में सिंधु नदी के समानान्तर बहती हुई कच्छ के मैदान में समुद्र से मिल जाती थी। महाभारत काल में कौरव-पाण्डव युद्ध इसी के तट पर लड़ा गया। इसी काल में सरस्वती के विलुप्त होने पर यमुना गंगा में मिलने लगी।

कालीबंगा से प्राप्त पुरातात्विक सामग्रियाँ

1922 ई. में राखलदास बनर्जी एवं दयाराम साहनी के नेतृत्व में मोहन-जोदड़ो एवं हड़प्पा (अब पाकिस्तान में लरकाना जिले में स्थित) के उत्खनन द्वारा हड़प्पा या सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष मिले थे जिनसे 4500 वर्ष पूर्व की प्राचीन सभ्यता का पता चला था। बाद में इस सभ्यता के लगभग 100 केन्द्रों का पता चला जिनमें राजस्थान का कालीबंगा क्षेत्र अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मोहन-जोदड़ो व हड़प्पा के बाद हड़प्पा संस्कृति का कालीबंगा तीसरा बड़ा नगर सिद्ध हुआ है। जिसके एक टीले के उत्खनन द्वारा निम्नांकित अवशेष स्रोत के रूप में मिले हैं जिनकी विशेषताएँ भारतीय सभ्यता के विकास में उनका योगदान स्पष्ट करती हैं –

ताँबे के औजार व मूर्तियाँ

कालीबंगा में उत्खन्न से प्राप्त अवशेषों में ताँबे (धातु) से निर्मित औज़ार, हथियार व मूर्तियाँ मिली हैं, जो यह प्रकट करती है कि मानव प्रस्तर युग से ताम्रयुग में प्रवेश कर चुका था। इसमें मिली तांबे की काली चूड़ियों की वजह से ही इसे कालीबंगा कहा गया। ध्यातव्य है कि पंजाबी में ‘वंगा’ का अर्थ चूडी होता है, इसलिए काली वंगा अर्थात काली चूडियाँ।

कालीबंगा से प्राप्त मुहरें-

कालीबंगा से सिंधु घाटी (हड़प्पा) सभ्यता की मिट्टी पर बनी मुहरें मिली हैं, जिन पर वृषभ व अन्य पशुओं के चित्र वर्तृधव लिपि में अंकित लेख है जिन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। वह लिपि दाएँ से बाएँ लिखी जाती थी।

ताँबे या मिट्टी की बनी मूर्तियाँ, पशु-पक्षी व मानव कृतियाँ

कालीबंगा सभ्यता में ताँबे या मिट्टी की बनी मूर्तियाँ, पशु-पक्षी व मानव कृतियाँ मिली हैं जो मोहनजोद़ो व हड़प्पा के समान हैं। पशुओं में बैल, बंदर व पक्षियों की मूर्तियाँ मिली हैं जो पशु-पालन, व कृषि में बैल का उपयोग किया जाना प्रकट करता है।

तोलने के बाट

पत्थर से बने तोलने के बाट का उपयोग करना मानव सीख गया था।

बर्तन

मिट्टी के विभिन्न प्रकार के छोटे-बड़े बर्तन भी प्राप्त हुए हैं जिन पर चित्रांकन भी किया हुआ है। यह प्रकट करता है कि बर्तन बनाने हेतु ‘चारु‘ का प्रयोग होने लगा था तथा चित्रांकन से कलात्मक प्रवृत्ति व्यक्त करता है।

आभूषण

अनेक प्रकार के स्री व पुरुषों द्वारा प्रयुक्त होने वाले काँच, सीप, शंख, घोंघों आदि से निर्मित आभूषण भी मिलें हैं जैसे कंगन, चूड़ियाँ आदि।

नगर नियोजन

मोहन-जोदड़ो व हड़प्पा की भाँति कालीबंगा में भी सूर्य से तपी हुई ईटों से बने मकान, दरवाज़े, पांच से साढ़े पांच मीटर चौड़ी एवं समकोण पर काटती सड़कें, कुएँ, नालियाँ आदि पूर्व योजना के अनुसार निर्मित हैं जो तत्कालीन मानव की नगर-नियोजन, सफ़ाई-व्यवस्था, पेयजल व्यवस्था आदि पर प्रकाश डालते हैं। मोहनजोदडो के विपरीत कालीबगाँ के घर कचची ईंटो के बने थे।

कृषि-कार्य संबंधी अवशेष

कपास की खेती के अवशेष मिले है साथ ही मिक्षित खेती (चना व सरसो) के साक्ष्य मिले है। कालीबंगा से प्राप्त हल से अंकित रेखाएँ भी प्राप्त हुई हैं जो यह सिद्ध करती हैं कि यहाँ का मानव कृषि कार्य भी करता था। इसकी पुष्टि बैल व अन्य पालतू पशुओं की मूर्तियों से भी होती हैं और बैल व बारहसिंघ की अस्थियों भी प्राप्त हुई हैं। बैलगाड़ी के खिलौने भी मिले हैं।

खिलौने

लकड़ी,धातु व मिट्टी आदि के खिलौने भी मुअन जोदड़ो व हड़प्पा की भाँति यहाँ से प्राप्त हुए हैं जो बच्चों के मनोरंजन के प्रति आकर्षण प्रकट करते हैं।

धर्म संबंधी अवशेष

मुअन जोदड़ो व हड़प्पा की भाँति कालीबंगा से मातृदेवी की मूर्ति नहीं मिली है। इसके स्थान पर आयाताकार वर्तुलाकार व अंडाकार अग्निवेदियाँ तथा बैल, बारसिंघे की हड्डियाँ यह प्रकट करती है कि यहाँ का मानव यज्ञ में पशु-बलि भी दिया करते थे।

दुर्ग (किला)

सिंधु घाटी सभ्यता के अन्य केन्द्रो से भिन्न कालीबंगा में एक विशाल दुर्ग के अवशेष भी मिले हैं जो यहाँ के मानव द्वारा अपनाए गए सुरक्षात्मक उपायों का प्रमाण है।

उपर्युक्त अवशेषों के स्रोतों के रूप में कालीबंगा व सिंधु-घाटी सभ्यता में अपना विशिष्ट स्थान है। कुछ पुरातत्वेत्ता तो सरस्वती तट पर बसे होने के कारण कालीबंगा सभ्यता को ‘सरस्वती घाटी सभ्यता‘ कहना अधिक उपयुक्त समझते हैं क्योंकि यहाँ का मानव प्रागैतिहासिक काल में हड़प्पा सभ्यता से भी कई दृष्टि से उन्नत था। खेती करने का ज्ञान होना, दुर्ग बना कर सुरक्षा करना, यज्ञ करना आदि इसी उन्नत दशा के सूचक हैं। वस्तुत: कालीबंगा का प्रागैतिहासिक सभ्यता एवं संस्कृति के विकास में यथेष्ट योगदान रहा है।

  • कालीबंगा सभ्यता हनुमानगढ जिले में स्थित है ।
  • यह सभ्यता वैदिक कालीन सरस्वती/द्वषद्वती नदी घाटी में फैली हुई थी ।
  • कालीबंगा घग्घर/नट/नाली/मृत/सोतर/हकरा/वाहिद नदी के किनारे स्थित है ।
  • कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ है काले रंग की चूडियाँ
  • इस सभ्यता की खोज 1952 ई. में अमलानंद घोष ने की । (माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की कक्षा 12 की पुस्तक में 1951 ईं. में खोज करना बताया गया है ।) 
  • कालीबंगा का उत्खनन कार्य बी बी. लाल व बी के. थापर के नेतृत्व में 1961 से1969 ई. में किया गया तथा श्री एम. डी. खरे, के एम. श्रीवास्तव व एस पी. जैन द्वारा भी उत्खनन किया गया । 
  • कालीबंगा विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं से सर्वश्रेष्ठ तो नहीं परंतु उनके समकक्ष मानी जा सकती है । इसीलिए डाँ. दशरथ शर्मा के अनुसार कालीबंगा को सामरिक व पुरातात्विक महत्व की दृष्टि से सिंधु घाटी सभ्यता की तीसरी राजधानी कहा जा सकता है ।
  •  पिग्गट महोदय ने हड़प्पा व मोहनजोदडो को सिंधु घाटी सभ्यता की जुडवाँ राजधानियाँ कहा है । 
  • सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों का सर्वाधिक संकेन्द्रण / घनत्व घग्घर हकरा क्षेत्र में पाया जाता है । सिंधु घाटी सभ्यता के काल को प्रथम नगरीकरण का युग कहा जाता है । 
  • कालीबंगा में मुख्यत घग्घर नदी के बायें तट पर दो टीले मिले है प्रथम पश्चिमी टीला तथा द्वितीय पूर्वी टीला ।

प्रथम पश्चिमी टीला – जो अपेक्षाकृत छोटा लेकिन ऊँचा है । पश्चिमी टीले के निम्न स्तरों में प्राक् हड़पा संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए है । इन्हीं प्राक् हड़प्पाकालीन ऊपरी स्तरों में हड़प्पाकालीन संस्कृति के पुरावशेष प्राप्त हुए है । जिनमें दुर्ग या गढी के अवशेष प्रमुख है ।
द्वितीय पूर्वी टीला – जो अपेक्षाकृत कम ऊँचाई तथा विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है । इस टीले से प्रस्तर धातुकाल या हड़प्पाकाल के अवशेष मिलते है ।

प्राक् हड़प्पा युगीन कालीबंगा

  •  इस बस्ती में मकानों के निर्माण के लिए कच्ची ईंटों का ही प्रयोग हुआ था । इसलिए कालीबंगा को दीनहीन बस्ती कहा जाता है । 
  • पक्की ईटों का प्रयोग केवल स्नानागार नाली एवं कुएं आदि के निर्माण में हुआ है । 
  • अन्य घरेलू सामग्री के अंतर्गत त्रिभुजाकार पक्की मिट्टी के पिण्ड ( टेराकोटा केक ), पत्थर के सिलबट्टे आदि प्राप्त हुए है

प्राक् हड़प्पायुगीन सामाजिक जीवन

  • प्राक् हड़प्पा युगीन कालीबंगा की बस्ती के चारों तरफ परकोटे की उपस्थिति तत्कालीन समाज में असुरक्षा की भावना ( संभवत: बाढ़ से ) का संकेत है ।
  • प्राक् हड़प्पाकालीन आवास का निर्माण कच्ची ईटों से किया गया था । स्नानागार तथा नालियो का निर्माण पक्की ईंटों से किया जाता था ।
  • मकानों की दीवारों में दरारें होने के कारण यहाँ भूकंप के अवशेष होने का प्रमाण है ।
  • कालीबंगा में समकोण दिशा मे जूते हुए खेत के साक्ष्य मिले है ।
  • प्राक् हड़प्पाकालीन मनुष्यों का आर्थिक जीवन में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान था । उत्खनन मे एक साथ दो फसलों की उपज के दोहरे जूते खेत के प्रमाण मिले है । ( आर पी एस सी-2०11 )
  • कालीबंगा मे खेत के दो पाडे थे कम दूरी चना, अधिक दूरी सरसों बोई जाती थी ।
  • कालीबंगा में प्राक् हड़प्पा व हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष मिले है ।
  • कपास की खेती के साक्ष्य सर्वप्रथम कालीबंगा में मिले है । जिसे यूनानियों ने सिंडन कहा है ।
  • कार्बन 14 पद्धति के आधार पर प्राक् हड़प्पाकालीन बस्ती का तिथिक्रम 2400 ई पू निर्धारित हुआ है ।

हड़प्पायुगीन कालीबंगा

  • हड़प्पा संस्कृति का विस्तार राजस्थान के उत्तरी भाग तक ही सीमित था ।
  • कालीबंगा एक नगरीय सभ्यता है । जिसमे नगर योजना हडप्पा संस्कृति के अन्य पुरास्थलों की भांति कालीबंगा में भी दो टीले दिखाई देते है । इन दोनों को अलग-अलग परकोटे ( कालीबंगा से दोहरे परकोटे के प्रमाण मिले है ) से सुरक्षित किया गया था । 
  • यहाँ की बस्ती सुरक्षात्मक दीवार ( परकोटे) से सुरक्षित से की गई थी ।
  • कालीबंगा में सभी प्रकार की ईंटों का अनुपात 4:2:1 है । कालीबंगा के अलावा हड़प्पा सभ्यता के अन्य नगरों में निचला नगर रक्षा प्राचीर से नहीं घिरा, इसलिए कालीबंगा को दोहरे परकोटे की सभ्यता कहा गया ।
  • कालीबंगा से हड़प्पाकालीन ( पश्चिमी टीले से ) गढी या दुर्ग के अवशेष मिले है । यह दुर्ग/गढी हड़प्पा और मोहनजोदडो के समकालीन थी ।
  • इस सभ्यता का नगर एक निश्चित योजना के आधार पर बसाया गया लगता है । सड़कों को पक्का बनाने की पद्धति का प्रचार कालीबंगा से हुआ । संपूर्ण नगर में उत्तर से दक्षिण की ओर तथा पूर्व से पश्चिम की और जाने वाली चौडी सडकें जो 5 मीटर से 7.20 मीटर तक चौड़ी थी । जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी । जिसे जाल पद्धति/ग्रीड पद्धति/चेम्सफौर्ड पद्धति/आक्सफोर्ड पद्धति कहा जाता है ।
  • कालीबंगा में सड़को की चौड़ाई 7.2 मीटर तथा गलियों की चौड़ाई 1.8 मीटर थी । कालीबंगा में भवनों के द्वार सड़को पर न खुलकर गलियों मे खुलते थे ।
  • दुर्ग के दक्षिण में कच्ची ईटों से निर्मित चबूतरे मिले है । इनमें एक चबूतरे पर एक कुआँ तथा सात अग्निवेदिकाएं प्राप्त हुई है । अग्निवेदिकाओं की आकृति आयताकार कुण्डनुमा है
  • इन अग्निवेदिकाओं के मध्य में बेलनाकार स्तंभ व कोयलों की भस्म भी मिली है तथा इनमें कुछ अन्न के दाने भी मिले है । इस प्रकार की अग्निवेदिकाएं तत्कालीन अन्य पुरास्थलों जैसे बणवाली, राखी गढी व लोथल से प्रात हुई है ।
  • कालीबंगा में फर्श में लगी हुई अलंकृत ईटे मिली है ।
  • कालीबंगा से मिट्टी, ताँबे व काँसे की चूहिडयाँ मिली है । कालीबंगा समाज में बलि प्रथा का प्रचलन था, यहाँ पर मिली हरिण तथा जैल को हड्डियों से बलि प्रथा का पता चलता है । कालीबंगा में बेलनाकार तंदूर मिले है तदूरों की प्रथा का होना ईरान (मेसोपोटामिया) से इस सभ्यता के सम्बन्ध के प्रमाण है । कालीबंगा के प्रमुख पशु गाय, बैल, भैंस, बकरी, कुत्ता, ऊंट, सुअर आदि थे ।
  • कुत्ता कालीबंगा सभ्यता का प्रमुख पालतु जानवर था ।
  • कालीबंगा से अवतल चक्की/सालन पत्थर/सिलबट्टे मिले है, जो अनाज पीसने या मिलाने के काम आता था । इस प्रकार का पत्थर सर्वप्रथम अरनेस्ट मैके ने हड़प्पा से खोजा था ।
  • इस सभ्यता के नगर की समृद्धि का मुख्य स्रोत उनत व्यापार, वाणिज्य व कृषि था ।
  • कालीबंगा से हड़प्पा संस्कृति के अन्य केद्रों को अनाज, मणके तथा ताँबा भेजा जाता था । कालीबंगा को ताँबा संभवत: गणेश्वर क्षेत्र ( सीकर एवं झुंझुनूं) से प्राप्त होता था । ताँबे का प्रयोग अस्त्र-शस्त्र तथा दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले उपकरण बर्तन एवं आभूषण बनाने में होता था ।
  • कालीबंगा में सोना, चाँदी, अर्द्धबहुमूल्य पत्थर, शंख आदि से आभूषणों का निर्माण किया जाता था । 
  • इनमें स्त्रियाँ कानों में कर्णफूल व बालियाँ पहनती थी,गले में मणकों का हार तथा हाथों में शंख, मिट्टी, ताँबे व काँसे से निर्मित चूडियाँ पहनती थी ।

कालीबंगा मे दाह सरकार

  • कालीबंगा के दुर्ग से 300 मीटर की दूरी पर उत्तर-पश्चिम में तथा बस्ती के दक्षिण में एक कब्रिस्तान भी मिला है ।
  • यहां के लोग मुख्यत: शव को दफनाते थे । कालीबंगा के कब्रिस्तान में प्रतीकात्मक शवाधान के अवशेष मिलते है । जैसे हडप्पा से आंशिक शवाधान , मोहनजोदडो से कलश : शवाधान उसी प्रकार कालीबंगा से प्रतीकात्मक शवाधान के अवशेष मिलते है ।
  • शव विसर्जन के 37 उदाहरण कालीबंगा से मिले है ।
  • कालीबंगा में अन्तयेष्टि के पूर्ण समाधि, आशिक समाधि, दाह संस्कार तीनों प्रकार मिलते है ।
  • कालीबंगा से तांबा, सैलखडी व मिट्टी की मोहरें मिली है । कालीबंगा सभ्यता से मिली मोहरों से लिपि का ज्ञान होता है । इस लिपि को सर्पिलाकार (बूस्ट्रोफेडन लिपि)/भाव चित्रात्मक (पिक्टोग्राफिक)/तृन्र्धव लिपि कहा जाता है ।
  • यहां की लिपी दांई से बाँई ओर लिखी जाती थी जो अभी तक पढी नहीं जा सकी है ।
  • लिपि के अधिकांश नमूने मोहरों से प्राप्त होते है ।
  • कालीबंगा व मोहनजोदडो से प्राप्त कुछ मोहरों पर पशुबलि के प्रमाण मिलते है ।
  • यहाँ से बेलनाकार मोहर, जो मेसोपोटामिया सभ्यता की है, मिली है
  • ईटों से निर्मित चबूतरे फर्श पर अलंकृत ईटों का प्रयोग तथा मिट्टी का पैमाना मिला है ।

कालीबंगा से मिली प्रमुख सामग्री 

  1. मिट्टी से निर्मित केक, 
  2. बैल की खंडित मूर्ति , 
  3. धीया तथा तामडे के मणके , 
  4. शंख की चूड़ी , 
  5. पक्की मिट्टी का खिलौना गाडी , 
  6. पहिए , 
  7. हड्डियों की वनी सलाइयाँ , 
  8. पत्थर के सिलबट्टे, 
  9. मिट्टी की गेंद,ताँबे का परशु, 
  10. मेसोपोटामिया की मोहर, 
  11. ऊँट की अस्थियाँ, 
  12. भग्न वेदिकाएं और शल्य चिकित्सा सम्बन्धी प्रमाण प्रात हुए है ।
  13. मकानों की दीवारों में दरारें होने के कारण यहाँ भूकम्प के अवशेष मिले है ।

नोट – कालीबंगा से मातृदेवी की कोई भी मूर्ति नहीं मिली है । सिंधुघाटी सभ्यता के स्थलों से नहरों द्वारा सिंचाई, नदी उपासना, मंदिर, सिंह, पन्ना व लोहे के अवशेष नहीं मिले है ।

राज्य सरकार द्वारा कालीबंगा में प्राप्त पुरावशेषों के संरक्षण हेतु यहाँ एक संग्रहालय की स्थापना 1983 ( आर्कियो लाॅजिकल सर्वे आँफ इंडिया के अनुसार ) में की गई व 1985-86 में यह सुचारू रूप से कार्य करने लगा ।

डी पी. अग्रवाल व रफीक मुगल ने घग्घर हकरा नदी क्षेत्र का सूखना कालीबंगा का नष्ट होने का कारण था ।

एस. आर. राव ने कालीबंगा के नष्ट होने का कारण बाढ को माना है । के. यू. आर. केनेडी ने कालीबंगा के नष्ट होने को प्राकृतिक आपदा या महामारी फैलना बताया है ।
कालीबंगा के पुरातात्विक अवशेषों की समानता रखने वाले दो स्थल सोंथी, बीकानेर ( कालीबंगा प्रथम ) तथा कोटदीजी, पाकिस्तान है ।

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